रसवह स्रोतस विकार
ज्वरातिसार (Fever with Diarrhoea)
परिभाषा (Definition)
आयुर्वेद के अनुसार, ज्वरातिसार वह अवस्था है जिसमें शरीर में ‘अग्नि’ (पाचन अग्नि) मंद हो जाने के कारण पाचन क्रिया प्रभावित होती है, जिससे दस्त होते हैं और साथ ही शरीर में बुखार भी आता हैI

कारण (Causes)
ज्वरातिसार के मुख्य कारण आयुर्वेद में इस प्रकार बताए गए हैं:
- असंतुलित आहार: अत्यधिक गर्म, मसालेदार, तला हुआ, या चिपचिपा भोजन, खट्टे फल, दही, और सिरके का सेवन शरीर में पित्त दोष को बढ़ा सकता है, जिससे पाचन अग्नि मंद हो जाती है और दस्त हो सकते हैंI
- दोषों का असंतुलन: विशेष रूप से पित्त दोष का असंतुलन, जो गर्मी और अग्नि का प्रतीक है, ज्वरातिसार का कारण बन सकता हैI
- वातावरण और जीवनशैली: अत्यधिक गर्मी या धूप में रहना, चाय, कॉफी, शराब और सिगरेट का अत्यधिक सेवन भी पित्त दोष को बढ़ा सकता हैI
- पाचन अग्नि की मंदता: पाचन अग्नि (पाचकाग्नि) के धीमे पड़ जाने से भोजन ठीक से नहीं पचता, जिससे दस्त की प्रवृत्ति बढ़ती हैI
- बाहरी कारण: आघात या बाहरी कारकों के कारण भी दोषों का असंतुलन हो सकता हैI
सम्प्राप्ति (Pathogenesis)
संप्राप्ति रोग की पूरी प्रक्रिया को समझाती है कि यह कैसे उत्पन्न होता हैI ज्वरातिसार की संप्राप्ति में निम्न चरण शामिल हो सकते हैं:
- निदान सेवन (Causative Factors): असंतुलित आहार और जीवनशैली के कारण दोष (विशेषकर पित्त) कुपित होते हैंI
- दोष संचय (Accumulation of Doshas): कुपित दोष अपने सामान्य स्थानों पर जमा होना शुरू हो जाते हैंI
- दोष प्रकोप (Aggravation of Doshas): दोष और अधिक उत्तेजित होते हैं और शरीर में असंतुलन बढ़ाते हैंI
- दोष प्रसार (Spread of Doshas): उत्तेजित दोष शरीर के अन्य हिस्सों में फैलते हैंI
- स्थानसंश्रय (Localization of Doshas): फैलते हुए दोष उन स्थानों पर जमा हो जाते हैं जहां शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और रोग के लक्षण पैदा करते हैंI
- व्यक्ति (Manifestation of Disease): रोग के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं, जैसे कि ज्वर और अतिसारI

लक्षण (Symptoms)
ज्वरातिसार के मुख्य लक्षण हैं:
- बुखार (ज्वर)
- दस्त (अतिसार)
- गुदा मार्ग से जल की अधिकता वाले मल का त्यागI
- पेट में हल्का दर्द
- पेट फूलना
- बार-बार शौच जाना
निदान (Diagnosis)
आयुर्वेद में रोग का निदान रोगी के समग्र मूल्यांकन पर आधारित होता हैI चिकित्सक निम्न कारकों पर ध्यान देता है:
- सामान्य शारीरिक परीक्षण: नाड़ी, मूत्र, मल, जीभ, आंखें, त्वचा और कान की जांचI
- रोगी की आंतरिक शारीरिक विशेषताएं और मानसिक स्थिति: रोगी की प्रकृति और मानसिक स्थिति का मूल्यांकनI
- प्रभावित शरीर के ऊतक (धातु), दोष, और रोग का स्थान: यह समझने के लिए कि कौन से दोष और धातु प्रभावित हैं और रोग शरीर के किस हिस्से में स्थित हैI
- रोगी की प्रतिरोधक क्षमता और जीवन शक्ति: रोग से लड़ने की रोगी की क्षमता का आकलनI
- रोगी की दिनचर्या, आहार संबंधी आदतें, और नैदानिक स्थितियों की गंभीरता: रोगी के जीवनशैली और आहार का प्रभावI
- पाचन की स्थिति: पाचन शक्ति का मूल्यांकनI
- व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति: रोगी के आसपास के कारकों का प्रभावI
आयुर्वेदिक सुझाव (Ayurvedic Tips)
आयुर्वेद ज्वरातिसार के लिए प्राकृतिक उपचारों और जीवनशैली में बदलावों पर जोर देता है:
- आहार में सुधार: गर्म, मसालेदार, तला हुआ और चिपचिपा भोजन से बचें। सादा, आसानी से पचने वाला भोजन जैसे खिचड़ी, दलिया, चावल का मांड और सूप का सेवन करेंI
- हाइड्रेशन: पर्याप्त मात्रा में पानी, नारियल पानी, छाछ और फलों का रस पिएं ताकि शरीर में पानी की कमी न होI
- पुनर्नवा: मूत्र संबंधी समस्याओं के लिए पुनर्नवा का सेवन सहायक हो सकता है, लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श के बिना इसका प्रयोग न करेंI
- सोंठ (अदरक): 5 ग्राम सोंठ को 1 लीटर जल में उबालकर दिन में 2-3 बार ले सकते हैं। या 2 ग्राम सोंठ को 3 ग्राम गुड़ के साथ, दिन में दो बार ले सकते हैंI
- अदरक: नर्व इन्फ्लेमेशन और दर्द को कम करने में अदरक प्रभावी हो सकता है। अदरक को पानी में उबालकर उस पानी का सेवन कर सकते हैंI
- तुलसी: तुलसी में ज्वरनाशक गुण होते हैं और यह पसीना लाने में मदद करती है, जिससे बुखार में आराम मिल सकता हैI
- अन्य औषधियां: आवश्यकतानुसार अन्य आयुर्वेदिक औषधियां जैसे गोक्षुरादि गुग्गुलु (मूत्र मार्ग की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए) का भी प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन यह चिकित्सक के परामर्श के बिना नहीं लेना चाहिएI
- पंचकर्म चिकित्सा: यदि आवश्यक हो तो शरीर के शुद्धि और संतुलन के लिए पंचकर्म चिकित्सा जैसे वस्ति, नस्य, अभ्यंग आदि भी लाभकारी हो सकते हैंI

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
ज्वरातिसार क्या है?
बुखार और दस्त के एक साथ होने की स्थिति को ज्वरातिसार कहते हैंI
क्या ज्वरातिसार गंभीर हो सकता है?
दस्त के गंभीर मामलों में यह एक गंभीर स्थिति बन सकती है, इसलिए घरेलू उपचारों से लाभ न मिलने पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिएI
क्या आयुर्वेद ज्वरातिसार का प्रभावी उपचार प्रदान करता है?
हाँ, आयुर्वेद में ज्वरातिसार के लिए आहार, जीवनशैली और औषधियों के माध्यम से प्रभावी उपचार उपलब्ध हैI
ज्वरातिसार में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं?
सादा और आसानी से पचने वाला भोजन खाना चाहिए, और गर्म, मसालेदार, तला हुआ भोजन, खट्टे फल, दही और सिरके से बचना चाहिएI
अस्वीकरण (Disclaimer)
- यह जानकारी आयुर्वेद के ग्रंथों व पत्रपत्रिकाओं पर आधारित है व केवल शैक्षिक उद्देश्यों व जनजागरूकता के लिए है। किसी भी रोग के निदान और उपचार के लिए कृपया एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें। आप drdixitayurved.com या मोबाईल नंबर 9079923020 पर ऑनलाइन अनुभवी सलाह व परामर्श प्राप्त कर सकते हैं।