रसवह स्रोतस विकार
धातुगत ज्वर (Fever seated in The Tissues)
परिभाषा (Definition)
धातुगत ज्वर (Fever seated in The Tissues) शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: “धातु” (शरीर के ऊतक) और “ज्वर” (बुखार)I आयुर्वेद के अनुसार, जब ज्वर पैदा करने वाले दोष (वात, पित्त और कफ) शरीर के ऊतकों में गहराई से प्रवेश कर जाते हैं और वहां जम जाते हैं, तो इसे धातुगत ज्वर कहा जाता हैI यह ऊतक-विशिष्ट लक्षण पैदा करता है जो प्रभावित धातु के आधार पर भिन्न होते हैंI

कारण (Causes)
ज्वर के सामान्य कारण (निदान) में शामिल हैं:
- आहार: अस्वास्थ्यकर भोजन की आदतें, अपच के दौरान भोजन करना, अनियमित खानपानI
- जीवनशैली: अत्यधिक शारीरिक गतिविधि, व्यायाम, थकान, मौसमी दिनचर्या का पालन न करनाI
- मनोवैज्ञानिक: भावनात्मक स्थिति में अचानक परिवर्तन, दुख, किसी भी गतिविधि में अत्यधिक लिप्तताI
- अन्य: मौसम में अचानक परिवर्तन या असामान्य जलवायु परिस्थितियां, शोधन प्रक्रियाओं का अनुचित या अत्यधिक प्रशासन, आघात, अपक्षयी स्थितियां, संक्रामक रोग, मवाद बनना, जहरीली गैसों, विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना; गर्भावस्था, प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल का अनुचित प्रबंधन, आध्यात्मिक, चंद्र, ग्रहों और नक्षत्रों की ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं में असामान्य परिवर्तनI
सम्प्राप्ति (Pathogenesis)
ज्वर की संप्राप्ति में दोषों (वात, पित्त और कफ) का ऊतकों में जमाव शामिल है, जिससे उनकी विकृत अम्लीकरण होता है, जो रोगजनन का चौथा चरण है, जिसे दोष दुष्य सम्मूर्छना कहा जाता हैI

लक्षण (Symptoms)
धातुगत ज्वर के लक्षण उस धातु पर निर्भर करते हैं जिसमें ज्वर स्थित होता हैI
धातु (ऊतक) | लक्षण (चरक संहिता के अनुसार) |
रस धातु (रस ऊतक/प्लाज्मा) | शरीर में भारीपन, अस्वस्थता, उल्टी, भूख न लगना, चिंता, बेचैनी, उबासी, शारीरिक कमजोरी (बिना शारीरिक गतिविधि के), चक्कर आना, प्रलापI |
रक्त धातु (रक्त ऊतक) | रक्त के थूकना, जलन, भ्रम, उल्टी, चक्कर आना, प्रलाप, चकत्ते, प्यासI |
मांस धातु (मांसपेशी ऊतक) | पिंडली की मांसपेशियों में दर्दनाक ऐंठन, अत्यधिक प्यास, मल और मूत्र का अत्यधिक निर्वहन, शरीर के अंदर जलन, अत्यधिक तापमान, ऐंठन, थकानI |
मेद धातु (वसा ऊतक) | अत्यधिक पसीना, अत्यधिक प्यास, मूर्छा, प्रलाप, शरीर से दुर्गंध, भूख न लगना, थकान, ध्वनि और अन्य संवेदी धारणाओं के प्रति असहिष्णुताI |
अस्थि धातु (हड्डी ऊतक) | अस्थि भेद (हड्डियों में दर्द), प्रलाप, तीव्र गति के साथ शरीर और अंगों का हिलना, सांस लेने में कठिनाईI |
मज्जा धातु (अस्थि मज्जा/तंत्रिका ऊतक) | हिचकी, सांस लेने में कठिनाई, खांसी, बार-बार अंधेरे में जाना, मर्मच्छेद (महत्वपूर्ण अंगों में दर्द)I |
शुक्र धातु (प्रजनन ऊतक) | लिंग में कठोरता, वीर्य का अत्यधिक स्राव, मृत्युI |
निदान (Diagnosis)
धातुगत ज्वर का निदान मुख्य रूप से रोगी के लक्षणों के सावधानीपूर्वक अवलोकन और प्रभावित धातु के आधार पर किया जाता हैI आयुर्वेदिक संहिताएं जैसे चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय ज्वर के निदान के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैंI निदान के लिए निम्नलिखित बातों पर विचार करना आवश्यक है:
- दोषों (Doshas) और धातु (Dhatu) की अवस्था का मूल्यांकन: यह समझने के लिए कि कौन सा दोष और धातु प्रभावित हैंI
- निदान पंचाक (Nidan Panchaka) का अध्ययन: रोग के पांच निदान कारकों (कारण, पूर्व लक्षण, लक्षण, उपचार और रोग की अवस्था) का अध्ययन करनाI
आयुर्वेदिक सुझाव (Ayurvedic Tips)
धातुगत ज्वर के प्रबंधन के लिए आयुर्वेद में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
- लंघन (उपवास) या लघु उपचार (Lightening Therapy): यह आम को पचाने, शरीर में हल्कापन लाने और बढ़े हुए शारीरिक तापमान को कम करने में मदद करता हैI
- तरल पदार्थों का सेवन: कफ प्रधान ज्वर वाले लोगों को अत्यधिक पानी पीने से बचना चाहिए, लेकिन वात और पित्त प्रधान लोगों को अनुमति हैI जीरा, अजवाइन, तुलसी जैसे तत्वों से उबला हुआ पानी पीने की सलाह दी जाती हैI
- आहार: आसानी से पचने योग्य भोजन जैसे यवागु (चावल का दलिया), मूंग दाल का सूप, बिना मसालेदार, बिना तैलीय, बिना खट्टा भोजन की सलाह दी जाती हैI
- दवाएं: आयुर्वेद में गुटिका, चूर्ण, क्वाथ, आसव, अरिष्ट जैसी विभिन्न प्रकार की आंतरिक दवाएं उपलब्ध हैं, जो आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी की जांच के बाद निर्धारित करते हैंI कुछ उल्लेखनीय दवाओं में सुदर्शन गुटिका, लक्ष्मीविलास रसम्, वेत्तुमरन गुटिका, विल्वादी, गोरोचनादि, प्रवाल पिष्टी, अमृतारिष्टम्, वासारिष्टम् आदि शामिल हैंI
- पंचकर्म प्रक्रियाएं: जब दोष आम अवस्था से मुक्त हो जाते हैं, तो पंचकर्म प्रक्रियाओं को निर्देशित किया जाता हैI
- स्वेदन (Fomentation): हल्के स्वेदन से ज्वर के प्रारंभिक चरण में पसीने के चैनलों को साफ करने और शरीर के तापमान को सामान्य करने में मदद मिलती हैI
- वमन (चिकित्सीय उल्टी): यदि कफ दोष अत्यधिक बढ़ी हुई अवस्था में है तो इसका उपयोग किया जाता हैI
- विरेचन (चिकित्सीय विरेचन): पित्त दोष की बढ़ी हुई स्थितियों में निर्धारित किया जाता हैI
- बस्ति (औषधीय एनिमा): यदि दोष बृहदान्त्र (पक्वाशय) में जमा हो गए हैं तो औषधीय एनिमा का उपयोग किया जा सकता हैI
- नस्य (नाक से दवा देना): सिर में भारीपन, सिरदर्द और संवेदी विकृति के साथ पुरानी स्थितियों के लिए निर्देशित किया जाता हैI
- रक्तमोक्षण (Bloodletting): यदि ज्वर ठंडी या गर्म चिकित्सा या तैलीय या तैलीय रहित चिकित्सा के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करता है, तो रक्तमोक्षण चिकित्सा की जाती हैI

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
धातुगत ज्वर क्या है?
धातुगत ज्वर वह ज्वर है जो शरीर की सात धातुओं में से किसी एक में स्थित हो जाता है, जिससे उस विशिष्ट धातु से संबंधित लक्षण उत्पन्न होते हैंI
धातुगत ज्वर के कारण क्या हैं?
धातुगत ज्वर के कारण दोषों का असंतुलन, अस्वास्थ्यकर आहार और जीवनशैली, मनोवैज्ञानिक कारक और बाहरी कारक हो सकते हैंI
धातुगत ज्वर के लक्षण क्या हैं?
लक्षण प्रभावित धातु पर निर्भर करते हैं, लेकिन इनमें आमतौर पर बुखार, शरीर में दर्द, थकान, पाचन संबंधी समस्याएं और मानसिक बेचैनी शामिल हैंI
धातुगत ज्वर का निदान कैसे किया जाता है?
आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी के लक्षणों का अवलोकन करके, नाड़ी परीक्षण और अन्य शारीरिक परीक्षणों के माध्यम से दोषों और धातुओं की स्थिति का मूल्यांकन करके निदान करते हैंI
अस्वीकरण (Disclaimer)
- यह जानकारी आयुर्वेद के ग्रंथों व पत्रपत्रिकाओं पर आधारित है व केवल शैक्षिक उद्देश्यों व जनजागरूकता के लिए है। किसी भी रोग के निदान और उपचार के लिए कृपया एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें। आप drdixitayurved.com या मोबाईल नंबर 9079923020 पर ऑनलाइन अनुभवी सलाह व परामर्श प्राप्त कर सकते हैं।